हरियाली तीज 2025: शिव-पार्वती के मिलन का पावन पर्व, जानिए व्रत का महत्व, पूजा विधि और परंपरा
हरियाली तीज को लेकर इस बार भी देशभर में तैयारियां ज़ोरों पर हैं। आइए जानते हैं इस पर्व का धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व।
हरियाली तीज 2025: तिथि और मुहूर्त
तारीख: मंगलवार, 5 अगस्त 2025
व्रत समय: सूर्योदय से चंद्र दर्शन तक
पर्व: श्रावण शुक्ल तृतीया
हरियाली तीज का पौराणिक महत्व
हरियाली तीज के दिन माता पार्वती ने भगवान शिव को कठोर तपस्या के बाद प्राप्त किया था। यह दिन उनके पुनर्मिलन का प्रतीक है। मान्यता है कि जो महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं, उन्हें वैवाहिक जीवन में सुख, सौभाग्य और पति की लंबी उम्र का वरदान मिलता है।
पूजा विधि और पारंपरिक रीति-रिवाज़
1. सुबह स्नान के बाद साफ हरे वस्त्र पहनें
2. शिव-पार्वती की मूर्ति की स्थापना करें
3. मेंहदी लगाना, चूड़ियाँ पहनना और सोलह श्रृंगार करना शुभ माना जाता है
4. निर्जल व्रत रखकर माता पार्वती की पूजा करें
5. तीज माता की कथा सुनें और आरती करें
6. रात्रि में चंद्रमा को देखकर व्रत का पारण करें
तीज के विशेष व्यंजन
इस दिन महिलाएं पारंपरिक पकवान बनाती हैं जैसे:
* घेवर
* पूड़ी-कचौड़ी
* मालपुआ
* सेवइयां
* खीर
ये व्यंजन व्रत के बाद प्रसाद के रूप में ग्रहण किए जाते हैं।
सांस्कृतिक रूप और लोक परंपराएं
हरियाली तीज का पर्व केवल पूजा तक सीमित नहीं है। इस दिन:
* महिलाएं पीपल या आम के पेड़ की डाली पर झूले डालती हैं
* लोकगीत गाए जाते हैं: "सावन आयो रे..."
* समूह में तीज का गीत, नृत्य और कथा का आयोजन होता है
* राजस्थान और बिहार में तीज की भव्य झांकियाँ भी निकाली जाती हैं
सोशल मीडिया और ट्रेंड
इस बार तीज पर सोशल मीडिया पर भारी रुझान देखा जा रहा है:
#HariyaliTeej2025 #SawanTeej #TeejLook जैसे हैशटैग ट्रेंड कर रहे हैं
महिलाएं इंस्टाग्राम पर अपने तीज लुक, मेंहदी डिज़ाइन, और पूजा सजावट की फोटो शेयर कर रही हैं
Influencers इस बार Eco-Friendly तीज और सादा जीवनशैली को प्रमोट कर रहे हैं
सरकारी आयोजन और सार्वजनिक छुट्टी
कुछ राज्यों में इस दिन सरकारी अवकाश होता है
महिला मंडल और एनजीओ मिलकर झूला उत्सव, गीत-संगीत और समूह पूजा का आयोजन करते हैं
राजधानी में कई मंदिरों में विशेष झांकी और श्रृंगार दर्शन की व्यवस्था होगी
निष्कर्ष:
हरियाली तीज नारीत्व, प्रेम, श्रद्धा और भारतीय संस्कृति का सुंदर संगम है। आधुनिक समय में यह पर्व महिलाओं के लिए न केवल भक्ति का, बल्कि आत्म-प्रेम और सामूहिक जुड़ाव का माध्यम बन गया है।