The Blue Tick

RBI के एक फैसले से गदगद हुआ बैंकिंग सैक्टर, जानिए क्या होगा बड़ा फायदा

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा बैंकिंग सिस्टम में 1.9 लाख करोड़ रुपए की नकदी डालने के फैसले को बैंकों के लिए एक सकारात्मक कदम माना जा रहा है। इस निर्णय का प्रभाव गुरुवार को प्राइवेट और पब्लिक सेक्टर के बैंकों के साथ-साथ नॉन-बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों (NBFC) के शेयरों में बढ़त के रूप में देखा गया। निफ्टी पीएसयू बैंक इंडेक्स 1.46% या 86.3 अंक चढ़कर 5,976.75 के इंट्राडे हाई पर पहुंच गया, जबकि निफ्टी बैंक इंडेक्स 0.72% या 349.15 अंक बढ़कर 48,839.10 तक पहुंचा।
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The Blue Tick: RBI News: आरबीआई ने बैंकिंग सिस्टम में अधिक नकदी उपलब्ध कराने के लिए 50,000 करोड़ रुपए की दो किस्तों में कुल 1 लाख करोड़ रुपए की सरकारी प्रतिभूतियों (G-Secs) की ओपन मार्केट ऑपरेशन (OMO) के तहत खरीदने की घोषणा की है। पहली नीलामी 12 मार्च को होगी और दूसरी नीलामी 18 मार्च को होगी। इसके अतिरिक्त, 24 मार्च को 36 महीनों के लिए 10 बिलियन डॉलर की डॉलर-रुपया स्वैप नीलामी आयोजित करने का भी निर्णय लिया गया है। इन उपायों से 1.9 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त लिक्विडिटी बैंकिंग सिस्टम में आएगी।

वर्तमान वित्त वर्ष के अंत तक टाइट लिक्विडिटी कंडीशन की आशंका थी, जिससे टैक्स भुगतान और अन्य वित्तीय दबावों के कारण बैंकों को नकदी की तंगी का सामना करना पड़ सकता था। इसके अलावा, आरबीआई द्वारा विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर की बिक्री के कारण भी बैंकिंग प्रणाली में नकदी की कमी हो रही थी। इस स्थिति से निपटने के लिए आरबीआई ने यह कदम उठाया है। आरबीआई ने कहा है कि वह लिक्विडिटी और मार्केट कंडीशन पर लगातार नजर रखेगा और वित्तीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक कदम उठाएगा।

अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह उपाय न केवल मार्च में नकदी की कमी को दूर करेगा, बल्कि लंबे समय तक टिकाऊ लिक्विडिटी की स्थिति में भी सुधार करेगा। निर्मल बंग इंस्टीट्यूशनल इक्विटीज की अर्थशास्त्री टेरेसा जॉन का कहना है कि मार्च के अंत तक लिक्विडिटी न्यूट्रल होने की संभावना है, और वित्त वर्ष 2026 में प्रवेश करते समय सरप्लस में जा सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि इससे ब्याज दरों के ट्रांसमिशन में सुधार होने की उम्मीद है, और कॉरपोरेट बॉन्ड स्प्रेड भी कम हो सकता है।

CITI बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री समीरन चक्रवर्ती का अनुमान है कि मार्च के अंत तक ड्यूरेबल लिक्विडिटी 1.2 लाख करोड़ रुपए के सरप्लस तक पहुंच सकती है। यदि बकाया VRR और अन्य उपायों को शामिल किया जाए, तो यह 3 लाख करोड़ रुपए तक हो सकता है।

दिसंबर 2023 के मध्य से नकदी की स्थिति खराब थी, जिसका मुख्य कारण टैक्स भुगतान के चलते भारी नकदी निकासी और आरबीआई द्वारा रुपये की स्थिरता बनाए रखने के लिए डॉलर की बिक्री था। इसके चलते फरवरी में भी आरबीआई ने 1.7 लाख करोड़ रुपए की नकदी सिस्टम में डाली थी।

इसके अलावा, आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने बैंकों को एक और राहत देते हुए लिक्विडिटी कवरेज रेश्यो (LCR) और प्रोजेक्ट फाइनेंसिंग से जुड़े नए मानदंडों को एक साल के लिए टालने की घोषणा की। ये नए नियम अब 31 मार्च 2026 से पहले लागू नहीं होंगे। इससे बैंकों को अपने वित्तीय प्रबंधन के लिए अधिक समय मिलेगा।

आरबीआई का यह फैसला बैंकों के लिए राहत भरा है, क्योंकि नए नियमों के चलते बैंकिंग सेक्टर को नकदी संकट का सामना करना पड़ सकता था। इससे पहले, पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर के बैंकों ने पूर्व आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास द्वारा प्रस्तावित इन मानदंडों का विरोध किया था, क्योंकि उन्हें डर था कि इससे वित्तीय सिस्टम में नकदी की भारी कमी हो जाएगी।